किसी भी भाव के फल का निर्धारण कैसे करें ।। Gharon Ke Fal Ko Kaise Jane
भवन्ति भाव भावेश कारका बल संयुता ।
तदा पूर्ण फलं द्वाभ्याम् एके नाल्प फलं वदेत् ।।
अर्थ:- भाव, भाव का स्वामी तथा भाव का कारक ग्रह तीनों ही बलवान हों तो उस भाव का पूर्ण फल, दो बलवान हों तो आधा फल तथा एक बलवान हो तो चौथाई फल समझना चाहिए ।।
द्वादशेश जिस भाव में बैठेगा, उस भाव को हानि ही पहुंचायेगा ।।
किसी भी भाव में जो ग्रह बैठा होता है, उसकी अपेक्षा जो ग्रह उस भाव को देख रहा होता है, उसका प्रभाव ज्यादा रहता है ।।
उदाहरण के लिए मीन लग्न की कुण्डली में गुरु राज्येश हुआ पर यदि मंगल सप्तम भाव में होगा तो गुरु की अपेक्षा भी मंगल का प्रभाव राज्य भाव पर ज्यादा रहेगा ।।
यदि इस कुण्डली के दशम भाव में कोई ग्रह हो भी तो फिर भी उस ग्रह की अपेक्षा देखने वाले ग्रह का विशेष प्रभाव रहता है ।।
अर्थात् भावेश या भावस्थ ग्रह की अपेक्षा उस भाव पर दृष्टि रखने वाले ग्रह का प्रभाव सर्वाधिक होता है ।।
यदि एक ही भाव पर एक से अधिक ग्रहों की दृष्टि हो तो उन ग्रहों में जो ग्रह सर्वाधिक बलवान होगा, उसका सर्वाधिक प्रभाव उस भाव पर रहेगा ।।
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।।। नारायण नारायण ।।।